मानस चौपाई _२१/१२/२०२२

ॐ श्री सीताराम चरण कमलेभ्यो नमः _

सभी प्रिय जनों को राम राम। आज के अरंड्या कांड में श्री राम से जब अगस्त्य मुनि ने भेट की तो तुलसी दास जी ने लिखा ***कह सुनि प्रभु सुनु विनती मोरी, अस्तुति करो कवन विधि तोरी। महिमा अमित मोरी मति थोरी, रवि सम्मुख खद्योत अंजोरी।।*** अर्थात हे प्रभु आप आश्रम में पधारे है आपकी किस विधि अस्तूति करू आप की महिमा अमिट और अपरंपार है आप करोड़ों सूर्य की भांति प्रकाशमान है और मैं जुगनू की भांति आपके सम्मुख हूं। प्यारे प्रिय जनों ऋषि अगस्त्य ने अपने स्वरूप और ज्ञान की सीमा को छोटा समझ कर प्रभु के दर्शन किए। इस संसार में छोटा बनकर सहजता से सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं । इसका अर्थ अपने सम्मुखवाले का मान बड़ा रखना । यद्यपि दोनो का मान काम नहीं फिर भी अपने को लघुता में रखना बड़ी बात है। ** लघुता से प्रभुता मिले ** शास्त्र भी कहते है । जीव भी यद्यपि ईश अंश होकर भी ईश से छोटा है क्योंकि इस सांसारिकता में आने पर उसके स्वरूप में बदलाव होकर गुण धर्म परिवर्तन होता है और फिर जब चेतन परब्रम्ह के समीप होता है तो एकाकार होकर फिर श्रेष्ठता को प्राप्त करता है ** ईश्वर अंश जीव अविनाशी ** इसीलिए कहा गया है। अगस्त्य मुनि ने भी यही कार्य किया और श्री राम के हृदय ग्राही बन गए और त्रिविध ताप शमनकर्ता बने तथा त्रिकालदर्शी मुनि कहलाए। प्रिय जनों श्रेष्ठ होकर भी श्रेष्ठता की सीढ़ी पर चढ़ते रहना ही जीवन लक्ष्य है। _

जय श्री सीताराम ( वी पी श्रीवास्तव)

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